कविताअन्य
कागज़ की कश्ती
धारा नितांत अकेली अपनी बालकनी में बैठी है। बेटी पीहू बच्चों के साथ बारिश के बाद बहते पानी में कागज़ की नाव छोड़ रही है। वह याद करती है वो दिन,,,तमाम स्मृतियां चलचित्र की भांति गुज़रने लगती हैं। मध्यमवर्गीय परिवारों के मोहल्ले में शर्मा जी और वर्मा जी रहते हैं घरों के सामने संकरी कच्ची पक्की सड़कें हैं। शर्मा जी का बेटा प्रवाह व वर्माजी की बेटी धारा के बीच अच्छी खासी दोस्ती है। बारिश क्या आती कि दोनों बच्चे घर से बाहर। कभी बूंदाबांदी में भीगना तो कभी पानी में छपाछप करना। दोनों की रुचियां भी एक जैसी। अपनी कलाकारियों से रंगबिरंगी तरह तरह की नावें बना गरीब बच्चों को बांटने के बाद दोनों बहते पानी में अपनी कश्तियां छोड़ते।दोनों बाज़ी लगाते कि दोनों की कश्तियां साथ साथ बहे। यदि किसी की आगे पीछे रह गई या डूब गई तो वे भी बिछड़ जाएंगे। लगता था दोनों की जोड़ी ईश्वर ने ही बनाई है। और सचमुच उनकी कश्तियां साथ साथ ही तैरती या डूब जाती। दोनों के घरवाले भी उनकी दोस्ती से खुश थे।यूँ भी दोनों बच्चे बड़े सुशील व होनहार थे।
परंतु उनके भाग्य में बिछड़ना लिखा था। शर्मा परिवार दिल्ली शिफ्ट होजाता है। धारा का प्रवाह भी दूर चला जाता है। कुशाग्र प्रवाह डॉक्टर बन जाता है।उधर धारा भी चयनित होकर दिल्ली में डॉक्टरी की पढ़ाई करने लगती है। दोनों अपने बचपन की दोस्ती भूल नहीं पाते। माँ पापा की लाख कोशिशों के बाद भी प्रवाह किसी और से विवाह करने को तैयार नहीं होता। दोनों को बारिश आने पर कागज़ की कश्तियां याद आने लगती। और बस चल देते नदी किनारे अपनी नावें लेकर। इसी विश्वास के साथ कि कश्तियां डुबेगीं नहीं।तैरती हुई आँखों से ओझल हुई यानी दोनों की दोस्ती सच्ची है। एक बार इत्तफाक से दोनों यमुना किनारे पहुँच जाते हैं अपनी अपनी कश्तियां लिए। हाँ ,उसमें अपने नाम की झंडियां लगाना नहीं भूलते। दोनों ही विपरीत किनारों पर खड़े हैं। एक दूसरे को देख सोचते कि हो न हो इन्हें भी किसी का इंतज़ार है। जैसे ही कश्तियां उनके पास पहुँचती हैं,दोनों एक साथ ख़ुशी से पागल हो चिल्ला पड़ते हैं, " तुम "l धारा की तन्द्रा टूटती है। वह बेटी को पुकारती है,"पीहू बिट्टो अब आजाओ।जुक़ाम हुआ तो याद है,इंजेक्शन लगेगा।"