कविताअतुकांत कविता
यूँ ही,,,कुछ तीर तुक्के
बैठे ठाले
गुज़रते गुज़रते दो रास्ते मिले थे
भूला नहीं मैं जहाँ हम मिले थे
तुमसे हुई थी मुलाक़ात पहली
हसीं वादियों में दो फूल खिले थे
ख़ुशनुमा बड़ी वो नज़रों से बातें
मिलने के वादें, न शिकवे गिले थे
अलहदा थी यारां गुफ़्तगू हमारी
बयाँ कर न पाया लब जो सिले थे
मिलेंगे ख़्वाबों में ख्वाइश यही थी
हमारे दरमियाँ यही सिलसिले थे
यादों में तेरी थी नींदें भी नदारद
किस्मत में मेरी लिखे ये सिले थे
जहालत मिली हिमाक़त से तेरी
खंडहर बने उम्मीदों के ये किले थे
ज़हमत उठाई,फ़जीहत सही थी
वे कसमें तुम्हारी पानी के बुलबुले थे
सरला मेहता