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दम लगाके होइशा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

दम लगाके होइशा

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नारी पर केंद्रित लघु कथा
"दम लगाके होइशा"

सूखा पुरा,,, हां यही नाम है इस गाँव का।यह छोटा सा गाँव एक बड़े से तालाब के चारों तरफ बसा था। एक जमाने में यह गाँव अन्न जल से भरपूर था। परंतु गाँववालों की अज्ञानतावश तालाब में कूड़ा करकट भरता गया व पानी का नामोनिशान नहीं रहा। गाँव की रामी काकी बड़ी समझदार महिला थी।उसने सबको इकठ्ठा कर समझाया ," देखो सरकारी मदद की बाट जोवोगा तो भूखा प्यासा मरी जावगा।बरसात के पेला सब जुटी जाव तलाव की सपाई करवा में। सब जवान गेती लाइ ने खोदवा लागो ने बूढ़ा होण तगारी भरी भरी ने लुगायां के पकड़ाओ।फेर बखेर दो मलबो बंजर जमीनां पे।"
जुट गए सब काम में,,वृद्धाएं कहाँ पीछे रहने वाली थी।कंडों का जगरा जला ,दाल पका गोल गोल बाटियाँ सेक
गरम राख में दबा देती और हो जाती सबकी गोट।
देखते देखते सारा तालाब खुद गया और बारिश के आते ही पानी से लबालब भर गया।
पानी कमी तो दूर हो ही गई ,काकी ने लोगों को दुश्मनी भुला सहयोग का पाठ भी पढ़ा दिया। गाँव की उन्नति के और भी रास्ते खोल दिए और मौके पर चौका भी लगा दिया," अब तम अपना
कुआ बावड़ी बी साप कर लो ने उनी बंजर जमीन पे फल फूल वाला छांवलादार झाड़म लगानो मत भूल जो।अपणो हाथ ने जगन्नाथ।"
सब गांववाले काकी को कांधों पर उठा नाचने गाने लगे,"दम लगाके होइशा"
सरला मेहता,,

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दादी की परी
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