लेखआलेख
* यात्रा वृतान्त *
माउंट आबू, पयर्टन स्थल
यूँ तो मैं ज़्यादा यात्रा नहीं करती। लेकिन आज स्नेही कमल भाई ने एक अविस्मरणीय यात्रा याद दिला ही दी। राजस्थान की माउंट आबू यात्रा सदा याद रहेगी। आबू अरावली श्रेणियों पर चारों तरफ़ से जंगल से घिरा है।
वैसे मैं कार, बस व ट्रेन से पाँच बार जा चुकी हूँ। आज मैं छुक छुक गाड़ी वाली सदाबहार देशी यात्रा पर लिए चलती हूँ।
करीब बीस सदस्यों का हमारा समूह था। माह जनवरी था, फिर भी गर्म कपड़ों की तैयारी और खूब सारे सूखे नाश्ते के साथ इंदौर रेल्वे स्टेशन पहुँचे। रात ग्यारह बजे हम शान्ति एक्सप्रेस में बैठ अहमदाबाद के लिए रवाना हुए। एक बात बताऊँ मुझे रेलयात्रा में थोड़ी धुकधुकी ही लगी रहती है। अपने सामान सहित बैठने के बाद ही राहत मिलती है।
वैसे भोजन घर से कर ही लिया था। फिर भी खाते पीते रहे और फिर सो गए। सवेरे करीब नौ बजे अहमदाबाद पहुँचे, मेरी बेटी उस वक़्त वहीं रहती थी। वह चाय खाना वगैरह लेकर आ गई। साथ में गरम मौजे लाना नहीं भूली कि माँ को ज़्यादा ही ठंड लगती है।
दोपहर दो बजे हम दिल्ली जंक्शन में सवार हो शाम चार बजे आबू पहुँच गए। हमारे लिए ब्रह्माकुमारी संस्थान की बसें तैयार थी। हमारी पाँच दिनों तक रहने की व्यवस्था भी वहीँ थी।
टेढ़े मेढे मनोरम रास्ते से हम अपनी मंजिल पहुँचे।मधुबन के शान्तिवन पहुँच लगा कि स्वर्ग में ही आ गए। स्वच्छ हरा भरा माहौल, सात्विक भोजन नाश्ता, यहाँ वहाँ झूले,
तीन सितारा होटल सी सुविधाएँ और अध्यात्म की तरंगें।
वहाँ के प्रार्थना प्रवचन के बाद अगले दिन एक मिनी बस से हम निकल पड़े सैर को। विश्व प्रसिद्ध दिलवाड़ा जैन मंदिर एक धरोवर है हमारी। धवल संगमर्मर से निर्मित यह कलात्मक मंदिर 11वीं-13 वीं सदी में श्री विमल शाह ने मंत्री वस्तुपाल की मदद से बनवाया था। यहाँ 105 जैन मूर्तियाँ हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल जो उस दिन देखे रघुनाथ मंदिर, टॉड रॉक, और अंत में सनसेट पॉइंट गए। वैसी ही लहरदार संकरी ख़तरनाक राहों से गुज़रना एक साहसिक अभियान की याद दिला देता है। संध्या की लालिमा में लेमनग्रास की चाय पीना आज भी याद है। बीच बीच में जामुन बेर आदि के साथ सूर्यदेव को विदा करने पत्थरों पर बैठ गए।
पुनः आश्रम जाकर वहाँ के कार्यक्रमों का जायज़ा लिया। तीसरे दिन पुनः चल पड़े जीप द्वारा चामुंडा मंदिर के लिए ।
बीच में एक साधना स्थल बना है वहाँ ध्यान लगाया और मंदिर पहुँच देवी दर्शन का लाभ लिया।
चौथे दिन आबू के प्रसिद्ध पीस पार्क में स्वर्गिक आनन्द पाया। फूलों की बहार , झूले, विभिन्न किस्मों की चाय के साथ पकोड़े व साबूदाना खिचड़ी का मज़ा भुलाए नहीं भूलता। ब्रह्माकुमारी अस्पताल में ध्यान योग को भी इलाज़ में जोड़ा जाकर सस्ते में सब स्वास्थ्य लाभ पाते हैं। दादी का बगीचा और ध्यान संगीत के सम्मिश्रण से खेती का नया प्रयोग देखा। ज्ञान सरोवर, पांडव भवन, सोलर संस्थान का आनन्द लिया।
पाँचवें दिन हमारी विदाई थी। लग रहा था मायके से ससुराल जा रहे हैं। दादी जानकी और गुलज़ार दादी ने हमें शालों की सौगात व रास्ते के लिए खाना दिया।
पुनः अहमदाबाद से शांति एक्सप्रेस से शाम पाँच बजे रवाना होकर
सुबह अपने इंदौर आ गए, कई मधुर स्मृतियाँ लिए।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित