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मेरा बावरा मन - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मेरा बावरा मन

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मेरा बावरा मन
न जाने क्यों हर पल मेरा मन विचलित रहता है ...
कभी यहां कभी वहा पंछी बन उड़ता रहता है ...

मेरे वश में बिल्कुल भी नही रहता है .…
न जाने हर वक्त किस सोच में डूबा रहता है ...

आखिर चाहता क्या है समझ नही आता ...
न जाने क्या क्या नये नये सपने हैं सजाता

पल भर में ही हजारो अभिलाषा जगाता
लेखक से लेकर डॉक्टर बनने की अभिलाषा रखता ...

न जाने इसे किस पल की तलाश है ...
होता हर जगह ये पूरी तरह हताश है ...

इस मन को पूरी तरह निश्चित करना होगा ...
एक ही लक्ष्य एक ही ख्वाब बुनना होगा ...

हर मंजिल को मुझे हर कीमत पर जीत जाना है ...
मन के हारे हार मन के जीते जीत ये सच कर जाना है ...

ए ! मेरे बावरे मन मुझे अपने मन के भाव लिखने दे ...
पकड़ा के कलम कागज बस मुझे लेखक बनने दे ...

अपनी कलम का जादू दुनिया पर चलाना हैं ...
पर ए बावरे मन तुझे बस यही ख्वाब देखना है ...

मेरा बावरा मन ...

ममता गुप्ता✍️

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