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भाग 2,,
नायिका ही संस्कृति की वाहिका है
गांधी,विवेकानन्द,शंकराचार्य आदि की प्रसिद्धि के पीछे नारी का ही हाथ रहा है। यदि विद्योत्तमा ना होती तो हिंदी साहित्य को कालिदास नहीं मिलते। जीजा बाई ने दिया वीर शिवाजी, सीता की सीख से तैयार हुए लव कुश। ऐसे अद्वितीय पुत्र ही नहीं वरन बहादुर वीरांगनाएं भी माओं ने तैयार की हैं।दुर्गावती, लक्ष्मी,पद्मिनी,रजिया,अरुणा आसफअली आदि क्या हैं,,, घर की नायिकाओं द्वारा संस्कृति का वहन ही है। और आज के परिपेक्ष्य में भी यह घर की नायिका हर क्षेत्र में परचम लहरा रही है। राजनीति में वह भंडारनायके इंदिरा प्रतिभा है ,अंतरिक्ष में वह कल्पना सुनिता है, वह किरण वेदी भी है,डॉ इंजी क्या नहीं है। ये नायिकाएं ही प्रेरित करती हैं आने वाली पीढ़ी को। अपनी विरासत ये सौंपती जाती हैं। यूँ भी हर पुरुष की प्रगति के पीछे एक नारी का हाथ होता हैं
भारत की संस्कृति सभ्यता की बात करें तो आज भी घर की स्त्री के गर्भवती होते ही एक सहज माकूल माहौल उसके आसपास रचा जाता है। अच्छी धार्मिक पुस्तकें पढ़ने को कहा जाता है,खान पान पर भी ध्यान दिया जाता है। ताकी पेट में पल रहे शिशु पर सकारात्मक प्रभाव पड़े। अभिमन्यु ने माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह प्रवेश का तरीका सीख लिया था।
जन्म के बाद से ही माता जैसा सिखाती बच्चा वैसा ही ढल जाता है।यह सच में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है।नारियां ही अपने बच्चों की प्रथम गुरु हैं। सब कुछ सिखा कर ही बच्चों को अपनी उड़ान भरने को छोड़ती हैं। अतः सही मायने में घर की नायिका ही संस्कृति की वाहक है।
सरला मैहता