कवितागजल
गजल
सबकुछ होकर अपना कुछ भी हमारा नही होता
अब क्या करें की थोड़े में गुजारा नही होता
ये दिल गर उनके प्यार का मारा नही होता
दुनिया में कोई शख्स यूं आवारा नही होता।
ये आंसू पिघल कर यूं बेसहारा नही होता
पलकों को छोड़ गर उसका किनारा नही होता।
शहर में उनके हुश्न का जो नजारा नही होता
मर ही जाते इस दुनिया में कोई हमारा नही होता।
स्वरचित-वन्दना सिंह-वाराणसी