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ग़ज़ल - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कवितागजल

ग़ज़ल

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ग़ज़ल
सरे राह मुलाक़ात हो गई क्या कम है
दिलो जां छिड़कती तुझपे क्या कम है

मैं नहीं और सही तुझको क्या गम है
तू मेरा हमराह है,यही तो तेरा भ्रम है

अहमियत मेरी कभी पहचानी ही नहीं
ख़ुद के हक़ में किया फ़ैसला अहम है

मंज़िल ढूंढना मुझे भी आता है सरल
तेरे सिवा कोई भी नहीं मेरा ये वहम है
सरला मेहता

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया। मेम गज़ल में तो शेरों की संख्या विषम होती है।

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