कहानीलघुकथा
नीलमणी का सपना
आज नीलमणी को कलेक्टर साहिबा की प्रथम नियुक्ति पर जाना है। तैयार होते गुनगुनाती है," आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे,,"। साथ जा रही चंपा माँ ने टोका, ओ लाड़ो! अभी तो छः और माओं से मिलना है।"
तभी ढेरों सामान के साथ चमेली गुलाब पारिजात रजनी मोगरा और चमेली आ जाती हैं। और एक एक कर शुरू कर देती , अपना अपना सलाह मशविरा , " अकेली कहीं ना जाना,समय से खाना व सोना और बिंदास रह किसी से डरना नहीं। हम सब हैं ना। तूने तो हमारे फूलों के नाम देकर वैसे ही निहाल कर दिया। यहाँ की चिंता ना करियो।
सरकारी गाड़ी में सवार हो सोचती है, "भगवान ने मुझे ऐसी प्यारी माएँ देकर मेरी किस्मत ही बदल दी। वरना उस कचरा पेटी में मुझे तो जानवर ही नोच खाते। सबने मुझे लायक बनाने के लिए कितनी प्रताड़नाएँ सही। काश मैं इनके लिए कर पाऊँ। "
उसे याद आ रहा है कि सातों ने मिलकर उसकी परवरिश में कितनी मेहनत की। हँसी कटाक्ष की पात्र भी बनी। यूँ भी उन्हें तीसरा ही दर्ज़ा दिया जाता है। समाज से दूर रहने को मज़बूर किया जाता है। खैर सरकार भी जाग रही है। लेकिन वह अब अधिकार दिला कर ही रहेगी। और एक दबंग अधिकारी के रूप में अपने अभियान का प्रारूप सोचने लगी।
सरला मेहता