कविताअन्य
मोल फूलों का
मज़दूर किसान के बेटे खुशाल जी को गाँव वालों ने आखिर जिता ही दिया। सब बड़े खुश कि अब कोई ग़लत काम नहीं होंगे।
सब अपने प्रिय नेता का दिल खोलकर स्वागत करते हैं। अब तो जिस ओर निकलते हार फूलों से लद जाते। लेकिन उन्हें बड़ी कोफ़्त होती इस फ़िजूल के खर्च पर। पत्नी फूली नहीं समाती, अजी यही तो है सबूत आपकी प्रसिद्धी का। देखो अपने फूलों से भरे घर को देख कई लोग जलते होंगे।"
खुशाल अपने सचिव से भी नाराज़ी जताते," इतने पैसे गरीबों के काम आ सकते हैं।" सचिव अपनी चिरपतिचित खुशामदी भाषा में उत्तर देता है,"सर , इससे फूलवालों का भी पेट भरता है। आप तो,,,।"
नेता जी इत्मीनान से कहते हैं, " हूँ उ उ,बात तो सही है।ऐसा करो, आज से ये सारे हार बुके भिखारियों को बाट दिया करो। वो बेचारे भी कुछ कमा धमा लेंगे। ठीक है।"
सरला मेहता