कहानीलघुकथा
"पवित्रालय"
पद्मिनी बाई का घर कोठे के नाम से बदनाम है। लेकिन एक तीरथधाम से कम नहीं है। कभी अति लावण्या पद्मिनी को कोई इसी कोठे पर हीरा माँ के हाथ बेच दिया गया था। पाक साफ़ नन्हीं पद्मिनी ने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया।
और तभी से हीरा माँ अनाथ बच्चियों की मसीहा बन गई। अब इन बच्चियों की पढ़ाई का प्रबंध भी होने लगा। यह
डांसबार की ही तर्ज़ पर है। किंतु सारे कार्यकलाप एक संगीत मन्दिर की तरह होते हैं।
शास्त्रीय संगीत की धुनों पर ठुमरियाँ गाई जाती हैं। और नृत्य होते हैं। इस हेतु बाक़ायदा टिकट लगता है। आर्थिक ज़रूरतों को पूरा कैसे किया जाए। मदिरापान पूर्ण वर्जित है। उचित वर मिलने पर बेटियों की तरह विदाई भी करते हैं।
राजा विक्रमसिंह को पुत्र सुमंत हेतु योग्य वधु की तलाश है। उन्होंने पद्मिनी के बारे में सुना और पहुँच गए बेटे के लिए रिश्ता लेकर। ब्याह में कोठे का नामकरण हो गया "पवित्रालय"
सरला मेहता