कविताअतुकांत कविता
शीर्षक लौटता बचपन ....
चाचा को जब भी फोन पर बात करो या घर पर मिलने जाओ तो हमेशा ही अपनी नासाज़ तबीयत का जिक्र करते नहीं थकते थे। कई बार डॉक्टर को भी दिखा चुके थे पर बीमारी का कोई अता पता ना था। एक बेटी की शादी हो चुकी थी। छोटा बेटा और बहू दोनों नौकरी पेशा। शाम को थक हार कर घर आते, फिर इतना समय ही ना होता कि चाचा के पास बैठें और दो बातें कर लें। हां, चाची दिनभर साथ होतीं, खूब सेवा भी करतीं पर कितनी बातें करतीं वो भी।
इधर चाचा की बहू की खुशखबरी थी। घर में कन्या की कमी थी। चाचा ईश्वर से कन्या रूप में पोती की मनौती मांगते और वही हुआ। पोती के आते ही चाचा के व्यवहार में सुखद परिवर्तन आ गया। पुराने सारे रोग न जाने कहां गायब हो गए।
मैं जब उनसे मिलने घर गई तो वह नन्ही राजकुमारी से खेलते हुए मिले। घंटाभर उसी की बाल क्रीड़ाओं का ज़िक्र करते रहे। यह एक सुखद आश्चर्य था मेरे लिए। अब मुझे समझ में आ रहा था कि चाचा को किसी डॉक्टर की नहीं, भावनात्मक सहारे की जरूरत थी जो अब उस नन्ही सी जान ने पूरी कर दी थी उन्हें सारा दिन व्यस्त रखकर...।
अमृता पांडे