कविताअतुकांत कविता
गुलाबी ठंड मेरे द्वार
हौले हौले दस्तक हुई आज मेरे दरवाजे में सुबह
खोला दरवाजा तो मुस्कुराते हुए खड़ी थी वह,
मैं थोड़ा सकुचाती, घबरायी, उसे पहचान ना पायी
छुआ उसने प्यार से मेरे नरम-नरम गालों को,
भर लिया मुझे स्नेहवश अपने आलिंगन में,
सच कहूं, अच्छा लगा मुझे उसका यह स्पर्श....
पर मैं थोड़ा सकुचायी, उसका परिचय पूछ ना पायी
कोविड का इतना खौफ था, अंदर बैठने को कह ना पायी,
फिर पूछ ही लिया जब मैंने ज़िद में आकर उसका नाम
वह शरारत में मुस्कायी, मंद मंद ठण्डी बयार साथ लायी,
तब समझ में आया कि गुलाबी ठंड मेहमान बन कर आई
ले गयी उसे घर के अंदर,अदरक तुलसी की चाय पिलायी,
देख कर उसे मैं भूल गई मई-जून की वो गरमाई
झंकृत हुए मन के सुप्त पड़े तार, ली ज़ोर की अंगड़ाई।
गजक, मूंगफली का मौसम, गाजर का हलुवा,अचार
आंवला, कीनू, संतरे की जगह-जगह छाई बहार..
घर- आंगन, चौबारे में नए पक्षियों की आहट है
नरम- नरम धूप में ऊन के गोलों सी गर्माहट है,
गुलाबी ठंड आयी है, यादों की पोटली संग लायी है,
दिल का हर कोना, लगता मानो सुरकानन- अमराई है।
अमृता पांडे