कवितालयबद्ध कविता
किसान
कठिन परिश्रम से भी जो,
कभी नही धबराया था.
खेत का सीना चीरकर उसने,
बंजर में अन्न उगाया था.
तूफानों में भी उसने,
कभी नही विश्राम किया.
बड़े सवेरे जगकर उसने,
सारा दिन है काम किया.
सारा दिन धूप में तपकर,
उसने धान लगाये थे.
सारा दिन वर्षा में भीगकर,
खेतों में धान उगाये थे.
पूस की ठंडी, अंधियारी रातों में,
ठंड से थर- थर काॅपा था.
फसलों की रखवाली करने,
रातों को वो जागा था.
बिजली की गर्जन से भी उसने,
हार कभी ना मानी थी.
खेतों की रखवाली खातिर,
गवाॅयी अपनी जवानी थी.
खेतों को लहलहाते देख,
मन- मयूर उसका नाचा था.
हिरन से सपनों के पीछे,
उसका मन भी भागा था.
हाय! रे क्रूर विद्याता,
दया तुझे ना उसपर आयी.
बे मौसम वर्षा बरसाकर,
भीषण तबाही तूने मचायी.
फसलों का बुरा हाल देख कर,
सीना उसका चाक हुआ
उसकी इतनी मेहनत का,
यह कैसा इंसाफ हुआ.
जो बिजली की गर्जन से ना हारा,
वो कर्जे से हार गया.
तेरे क्रूर आघात से थक कर,
जीवन उसने त्याग दिया.
ये स्वरचित रचना है।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड