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यादें - अजय मौर्य ‘बाबू’ (Sahitya Arpan)

कविताबाल कविताअन्य

यादें

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यादें

शामियाने शाम के गहराने लगे हैं
बचपन वाले दिन याद आने लगे हैं
दादी की बातें वो दादा के किस्से
नानी और नाना भी याद आने लगे हैं।

स्कूल से आकर बस्ता फेंकना
घर में झांकना, यहां-वहां देखना
गेंद-बल्ला उठाकर भागे थे तब
गाल के थप्पड़ याद आने लगे हैं।

परीक्षा का मौसम, पढ़ाई की चिंता
सालभर घूमा अब काम नहीं बनता
अच्छा रहा परिणाम तो सब ठीक
पिटाई वाले दिन याद आने लग हैं।

होते ही परीक्षा ननिहाल को जाना
मामा को सताना, मामी को पकाना
तरबूज-खरबूज, आम रस मीठा
कुल्फी-फू्रटी भी याद आने लगे हैं।

अजय बाबू मौर्य ‘आवारा’
उप संपादक, लोकमत समाचार
नांदेड़

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