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उरांव जनजाति - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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उरांव जनजाति

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उरांव जनजाति

उरांव स्वतंत्र रुप से दो हजार साल तक छोटा नागपुर में राज करते रहे। संत पंडरू ने अपनी किताब में लिखा है कि छोटा नागपुर क्षेत्र में बसने वाले उरांव जनजाति को न तो अंग्रेजी शासन और न ही स्थानीय राजा गुलाम बना सके। आरंभिक दौर में ये महाराष्ट्र में थे, फिर बिहार और इसके बाद छत्तीसगढ़ के रायगढ़ व सरगुजा जिले में फ़ैल गए।
इनके शासन की गवाही छोटा नागपुर में मिलने वाले खंडहर हैं। खेती-किसानी और मुर्गीपालन। उरांव जनजाति की महिलाएं भी श्रमजीवी होती हैं।वे जंगलों में जाकर तेंदूपत्ता, सरई बीज, महुआ तथा चिरौंजी आदि एकत्र करने का कार्य करती हैं
भादो मास शुक्ल एकादशी के दिन करमा उत्सव का आयोजन होता है।उस दिन उरांव जनजाति के स्त्री और पुरूष उपवास रखते हैं और शाम को करमा डार की पूजा तथा कथावाचन के पश्चात खाना-पीना,
मांदल और ढोलक की थाप पर नृत्य होता है। उरांव हिन्दू जीवन पद्धति को अपना चुके हैं और भगवान राम उनके आराध्य देव हैं।
उरांव जनजाति में विवाह की पुरानी परम्परा आज भी कायम है। सामान्यत: विवाह योग्य युवक का पिता पुत्रवधू की तलाश करता है।तलाश पूरी हो जाने पर वधू के पिता के समक्ष प्रस्ताव रखता है। दोनों पक्षों की आपसी सहमति के बाद परम्परानुसार बूंदे की रकम तय होती है। बूंदे में नगद राशि के साथ चावल, दाल तथा तेल दिया जाता है।यह सामग्री वरपक्ष रिश्ता तय हो जाने के बाद वधूपक्ष को देता है। नगद राशि का वरपक्ष की आर्थिक स्थिति के अनुसार दी जाती है।
इनमें बंदवा और ढूंकू विवाह परम्परा भी प्रचलन में है।
जिसमें जीवनसाथी पसंद आने पर युवक युवती की रजामंदी के बाद उसकी पसंद की चूड़ी और वस्त्र पहना कर उसे अपनी जीवनसंगिनी बना लेता है। इसे बंदवा प्रथा कहा जाता है।
ढूंकू विवाह परम्परा में अगर युवती को कोई युवक पसंद आया तो युवक की रजामंदी के बाद वह उसके घर में बिना किसी औपचारिकता के रहने लगती है। विवाह की औपचारिकता बाद में पूरी की जाती है।
उरांव जनजाति मुंडा व खारिया जनजाति से मेल खाते हैं। इनका आपस में मेलजोल है लेकिन नातेदारी नहीं। इस जनजाति में शिक्षा की कमी है लेकिन अब इनका रुझान शिक्षा की ओर होने लगा है। कई उरांव युवा शिक्षित होकर ऊंचे पदों पर पहुंच गए हैं। परम्परागत उरांव परिवार आज भी अंधविश्वास के शिकार हैं और रोग-दुख की मुक्ति के लिए तांत्रिकों की शरण में जाते हैं।
गीता परिहार
अयोध्या

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