कविताअतुकांत कविता
सर्द ठिठुरते रातों में
खेतों में करते काम
अथक परिश्रम करते
नहीं मिलता आराम
कहते हैं सब हमें अन्नदाता
हम हैं सब के भाग्य विधाता
चीर के धरती का सीना
मिट्टी से सोना उपजाते है
जन-जन की हम
भूख मिटाते
फिर भी गरीब किसान कहलाते
हड्डी तोड़ परिश्रम करते
धरती से अन्न उगाते हैं
चीर के धरती का सीना
मिट्टी से सोना उपजाते हैं
सर्दी गर्मी और बरसात
सारे मौसम एक समान
हम किसान है
नाज है हमको
धरती पर अभिमान है हमको
हम अपना फर्ज निभाते हैं
धरती का कर्ज चुकाते हैं
जय जवान और
जय किसान का नारा
हमसे है भईया
भारत मां के लाल हैं हम
देश किसान हैं हम भईया
अंजनी त्रिपाठी
गोरखपुर उत्तरप्रदेश