कविताअतुकांत कविता
ये बारिश भी तेरी यादों की
तरह रुक रुक के आ रही है।
ये काले बादल भी
बीते लम्हों की तरह
इस दिल धरा पर छाए हैं।
चाहें जब भी
निकलना इस यादों के भंवर से
काली रात सी तुम बिन जिंदगी से
डर लगता है।
दिल करता है सो जाऊँ
यादों की अँधेरी रात में
फिर दहल जाता है
दिल सोचकर तुम आये तो कैसे मिलोगे
क्या वो खुशनुमा सुबह फिर आएगी?
वो चमकता आसमां
महकती हवाएँ
वो दूर कही सूरज की मद्धम चमक।
जिंदगी सी लगती है इन्ही लम्हों में क्यों
दिल खिलता है उन्ही यादों की चमक से
ए खुदा ।तू क्यों रोकता है इन बूंदों को
बरस लेने दो इनको धरा पर
तुम क्या जानो प्यासे लबों की हालत,
सदियों से प्यासी है ये धरती ।
काले बादल तो बरसने को आतुर है
तुम क्यों रोकते हो इन्हे
जालिम दुनिया की तरह ।
रचनाकार ...मुकेश भरद्वाज
स्वारघाट, हिमाचल प्रदेश
9817214366
Bhardwajmukesh323@gmail.Com