कहानीलघुकथा
"डोले मोरा जिया"
"बाई सा महाराज ! मुंडेर पे कागा बोला।" तभी नगर में खबर आग की तरह फैल गई कि लापता कुंवर प्रतापसिंह पधार रहे हैं। सुध बुद्ध खो बैठी हेमकुंवर बाईसा अन्न जल त्याग त्याग दिए थे, "कुंवर सा के हाथ ही जल ग्रहण करेगीं।" खबर
सुनकर झूम उठी, " अरे लाओ मेरे ब्याह का जोड़ा और जेवर। " सौलह श्रृंगार कर लड़खड़ाते हुए मंगेतर के आने की ख़ुशी में रचाने लगी घूमर,,,मोरी अटरियों पे कागा,डोले मोरा जिया,बोले कोई आ रहा है।पूरा महल जगमगा उठा।
जैसे ही कुंवर सा लाव लश्कर के साथ ड्यौढ़ी पर आए,बाई सा मदहोश सी जनम जनम के साथी की बाहों में समा गई।
सरला मेहता