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तालियाँ - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

तालियाँ

  • 226
  • 5 Min Read

" तालियाँ "

प्रादेशिक नृत्य प्रतियोगिता के लिए नाम "मृणाल रेगे"। एक नाज़ुक सा साया मंच पर आया। मंच पर रोशनी होले होले पसरने लगी। इस स्वप्न सुंदरी के आने से मंच और भी प्रकाशित हो गया। नाज़ुक सी नार नवेली छा गई,,,गुलाबी चूनर से ढका मुखड़ा व घेरदार कलियों वाला घाघरा। बगैर कुछ बोले उसने हाथ जोड़े और लगी नाचने,,,मैं ससुराल चली जाऊँगी,,,।
दर्शक मंत्रमुग्ध हो निहारने लगे। शायद तालियाँ बजाने की याद ही ना रही। जजेस खड़े हो गए। अंत में घूमर का जलवा दिखाया। ज्यों ही घूँघट हटाया और नमस्कार बोला, अचंभित
हो सब देखने लगे। एक जज से रहा ना गया,पूछ बैठे, " आप बेटा लड़के,,, हो।" सिहरती सहमती मर्दानी आवाज़ सुनाई दी, " जी , मैं मृणाल,ना लड़का और ना लड़की।"
हॉल में सन्नाटा,कहीं से सिसकियाँ भी ,,,,। जजों ने ख़ूब सराहा ," एक बार सब इनके लिए जोरदार तालियाँ बजाइए।" मृणाल रोते हुए इतना ही कह पाया, " आज पहली बार सुनी हैं तालियाँ। अभी तक सिर्फ़ तालियाँ बजाई और गालियाँ खाई। "
सरला मेहता

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी..! लीक से हटकर..!! ?

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