कविताअतुकांत कविता
रिश्तो का अंतर्द्वंद -
माँ बनने का अहसास
होता है सबसे सुखद सबसे खास
उस पवित्र शब्द को पूरित करती
बेटा बेटी दोनों की आवाज
बेटा कुल का रखवाला है
बेटी है पराया धन कह
क्यों रिश्तो में भर दिया अंतर्द्वन्द
जन्म दिया जब बच्चों को
ना किया कोई भी भेदभाव
बेटी बेटे को बड़ा किया
एक सी सुविधा सम प्रेमभाव
बेटा मेरी बगिया को सजाए
बेटी दूसरे घर मान बढ़ाएं
कैसे कहूं उसे पराया धन ।
नाजों से पली, फूलों की कली
ना कहो उसे कर दूं दान
माँ के आंचल में मचा है अन्तर्द्वन्द
क्यों रिश्तों में भर दिया अन्तर्द्वन्द
बच्चों का साया बनकर ,
मात-पिता निभाते जिम्मेदारी।
जब हो जाएं बुजुर्ग,
वृद्धाश्रम भेजने की बो करते तैयारी ।
मान करें न बड़ों का , ना उनसे कोई प्यार करे
बड़े बुजुर्गों की अनुनय का
निशिदिन वे अपमान करें ,
पर फिर भी संपत्ति बेदखल का विचार आए जब मन में,
उनको विचलित करता है अंतर्द्वन्द ,
इस कदम से मेरे खड़ी हो जाएंगी
मेरे बच्चों के लिए अनेकों उलझन।
पिता के सीने में मचे है अन्तर्द्वन्द,
हर रिश्ते में है अंतर्द्वन्द
हर रूप में है अंतर्द्वन्द
जितना ही डूबोगे इसमें ,
विदीर्ण होंगे अंतर्मन...
अहा !खत्म हो अन्तर्द्वन्द ...
सुकून से भर जाएं मन।।
स्वरचित/मौलिक
वंदना चौहान
आगरा (उत्तर प्रदेश)