कहानीलघुकथा
जो बोया , वो पाया
मेरे घर के सामने वाले धनी किसान देवा जी रहते हैं। सब कुछ होते हुए भी दोनों बेटों की शराबखोरी व जुआँ बाज़ी से बेहद परेशान।
आज फिर रिहेब सेंटर की गाड़ी कमांडों सहित आकर रुकी। गालियाँ देते बड़ा बेटा राम चिल्लाया,"अरे , मत लगाओ बेहोशी की सुई।"
कमांडों घसीटते हुए उसे गाड़ी में डाल चल देते हैं।
चार छः माह की फ़ुर्सत। इसी बीच छोटे बेटे श्याम का दंगल शुरू। बस ऐसे ही बारी बारी से एक घर आता है तो दूसरा सेंटर में।
कहने को दोनों के बीबी बच्चे हैं।पर काम धंधा के नाम सिफ़र। खेती बाड़ी नौकरों के भरोसे। देवा जी का समाज में रुदबा अवश्य है । किंतु पीठ पीछे चर्चा तो होती ही है, " अरे पिताश्री कहाँ दूध के धुले हैं। जवानी में मौज़ मारने के बजाय बच्चों के शिक्षा
संस्कार का ध्यान रखा होता। आज ये दिन नहीं देखने पड़ते। जो बोया वो पाया।"
सरला मेहता