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भूल सुधार - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकप्रेरणादायकअन्य

भूल सुधार

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पारिवारिक कहानी
भूल सुधार
 
मां दूसरी बार कमरे में आई।शिवा अभी भी सो रहा है।बाकी तीनों बच्चे एक-एक एक करके नहा चुके हैं।अमल अपना स्कूल बैग लगा रहा है, अनन्या चोटी कर रही है,निशा पानी की बोतल भरने रसोई में आई तो मां ने कहा ,"जा शिव को जगा दे ,स्कूल को देर हो जायेगी ।"
निशा डरते - डरते दरवाजे से ही बोली,"शिवा,उठो,नाश्ता तैयार है।"शिवा ने कोई उत्तर नहीं दिया।तीनों बच्चों ने नाश्ता किया और लंच बॉक्स बैग में रख कर स्कूल के लिए निकल गए। अनन्या रिक्शे से,अमल दोस्त की साइकिल पर और निशा अपनी सहेली लक्ष्मी के साथ पैदल ही।
मां ने घड़ी देखी ,अब भी ये लड़का नहीं उठा,स्कूल को देर हो जायेगी, गुस्से से आवाज़ लगाई ",सब स्कूल के लिए निकल चुके,तुम अभी पड़े हो,बस उठ जाओ अब।"
"नहीं जाना मुझे स्कूल,सोने भी नहीं देती।"कहते हुए एक झटके से उठ कर वह बाहर निकल गया।
मां सिर पकड़ कर बैठ गई,यह अब रोज़ का क़िस्सा हो चला था,आज तीसरा दिन था शिवा को स्कूल में नागा करते।क्या करे,कुछ समझ नहीं आ रहा था।
बिज्जू बाबू की सरकारी नौकरी थी।इस समय घर से 200 किलो मीटर दूर पोस्टिंग थी।महीने में 2-3 दिन के लिए आते थे।क्या उन्हें ख़बर कर दे ? शिवा के लक्षण अच्छे नहीं लगते।मगर अभी दो हफ़ पहले ही तो गए है ,इतनी जल्दी छुट्टी मिलेगी या नहीं।
 दोपहर होने को आई।मां बार - बार बाहर आकर जहां तक गर्दन घूम सके देखती,मगर शिवा को किसकी फ़िक्र थी ?मां सुबह से ऐसे ही थी।निशा लौटी तो मां का मुंह देखकर सब समझ गई।मां को अपनी कसम दिलाकर खाना खिलाया।
रात हुई तो शिव लौटा।सीधे हाथ- मुंह धोया ।मां ने खाना लगा दिया,खाकर अपने बिस्तर पर सो रहा।मां को किसी करवट चैन नहीं।
सुबह उठते ही चिनम्मा के पास पहुंची,कहने लगी,"।परिवार को संभालने की जिम्मेदारी मां की होती है,लगता है मैं नाकाम हो गई ।"उसे सब दुख बताया और पैरों पर गिर कर रास्ता सुझाने की विनती की।
चीनम्मा ने कहा," बात तो गंभीर है,तुम जैसे मैं बताती हूं वैसे करो ,ऊपर वाले की दया हुईं तो वह रास्ते पर आ जाएगा।"उसने कहा , "बेटे के दोस्तों को दावत पर बुलाओ,तुम्हे जानकारी होगी कि कैसे लड़के उसके दोस्त हैं। उससे कहना कि यह सब तुम एक स्वप्न में देवी के बताए आदेश से कर रही हो। हां,उसके बाद उन सबको समझाना कि वे जिस राह पर चल रहे हैं वह सही  नहीं है।" 
शुभ्रा घर लौटी तो देखा कि बिज्जु बाबू रिक्शे से उतर रहे हैं।पति को देखते ही उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।नाश्ता पानी के बाद उनको चिनम्मा की बात बताई।पति भी राज़ी हो गए, आखिर परिवार के मुखिया तो वही थे।जल्दी- जल्दी सामान की व्यवस्था में लग गए।
पिता के आने की खबर पाकर शिवा दोपहर को घर आ गया।जब उसे कहा गया कि कल वह अपने दोस्तों को दावत पर बुलाले,तो पहले तो अच्मभित हुआ,फिर खुश होकर उन्हें आमंत्रित करने चला गया।
दूसरे दिन सब ने खूब अच्छी दावत का मज़ा लिया,दावत के बाद शुभ्रा शिवा के दोस्तों के बीच बैठ गई,इधर -उधर की बात करने के बाद उसने शार्दूल से पूछा,"जीवन में तुम किसे सबसे अच्छा मानते हो ?"शार्दूल तपाक से बोला,"पैसा !"
"अच्छा, पैसा ?तो उसके लिए तुम क्या करोगे ?उस असमंजस में देखकर बोलीं, तो पैसा आए इसके लिए शिक्षित होना होगा न ?"
इससे पहले कि वह औरों से भी बात करतीं शिवा सब
 को बाहर धकेलते हुए लेे गया।
फुसफुसाते हुए बोला," बुडऊ चले जायें,तब इनका इलाज़ करता हूं। खाना खिलाया तो क्या, बेइज्जत करेंगी?"शिवा  नहीं जानता था कि पिता ने सब सुन लिया है।
वे धड़धड़ाते हुए बाहर निकले,पास पड़ा सोटा उठाया और गरजे," आज भूल सुधार करनी ही पड़ेगी।मैने अपनी हैसियत से बाहर जाकर तुमने जो मांगा ,वह दिया,मैने बाकी बच्चों की जरुरतों में कटौती की,मगर तुम्हें कभी मना नहीं किया...,यह उसका सिला है... ? और बुडऊ किसको कहा..? ?अपने पिता के लिए यही सम्मान तुम्हारे दिल में है ? परिवार के प्रति क्या कर्तव्य है, बड़े लड़के हो, छोटे तुम्हराअनुसरण करेंगे।"
कहते हुए पिल पड़े।
" लातों के भूत,बातों से नहीं मानते,बोलो, आज से दोस्तों से तौबा की,पढ़ाई में मन लगाऊंगा,बेनागा स्कूल जाऊंगा, बोलो..वरना.."
शिवा पिता के पैरों पर गिर पड़ा,क्षमा मांगी,दोबारा गलती न करने का वादा किया।पिता ने उठा कर सीने से लगा लिया।
मां हल्दी वाला दूध लेकर आ गई, छोटे भाई बहन मुंह दबा कर हंसने लगे।अब परिवार की खुशियां लौट आई थीं।
गीता परिहार
अयोध्या (फ़ैजाबाद)

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दादी की परी
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