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" वो तिराहा " - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

" वो तिराहा "

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" वो तिराहा "

" माधवी , दो चेक काट जाना। छोटू की फ़ीस और,,,तेरी बहन की सगाई है परसों ।" जी बाबा कहते वह ऑफ़िस के लिए निकल पड़ी।बस में बैठ हमेशा की तरह सोच में डूब गई, " अब तक तो मुकुल ने शादी कर ली होगी। दोनों ने साथ जीने मरने की कसमें खाई थी। बाबा की नौकरी छूटने से घर का सारा दारोमदार घर की बड़ी बेटी होने से उसके कांधों पर आ गया। माँ का इकलौता बेटा है मुकुल, परेशान था नौकरी के लिए "
तभी वह तिराहा आ जाता है जहाँ स्टॉप पर बैठ दोनों अपने सुख दुख साँझा करते थे। वह स्टॉप माधवी को उसकी मर्ज़ी के बिना वहाँ उतरने पर मज़बूर कर देता है। ज्यों ही वह उस जानी पहचानी पुलिया को देखती है, चिल्ला पड़ती है, " मुकुल , तुम यहाँ,
कब आए, कहाँ थे,कैसे हो, माँ कैसी है,,,,आदि" प्रश्नों की बौछार करते उसकी बाहों में समा जाती है। दोनों निःशब्द, आसूँ बहाते एक दूसरे को निहारने लगे।
" माधवी ,मुझे सरकारी नौकरी मिल गई है। माँ ने भी तुम्हें बहु मान लिया है। मेरी एक शर्त है।तुम्हें अपनी पूरी पगार अपने बाबा को भेजना होगा, जब तक छोटू कमाने ना लगे।
दोनों एक साथ उस गुमठी की ओर इशारा करते हैं जहाँ वे चाय पिया करते थे।
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

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