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कविताअतुकांत कविता
ये कैसा श्रम ? कलम वाले नन्हें हाथों में खड़े पकड़ बुहारी करने को मज़बूर हो गए दिन-रात हैं दिहाड़ी दौड़ दौड़ खिलाते पिलाते ख़ुद भूखे रह जाते ठंड,गर्मी,बारिश हो चाहे पाते नहीं ये छुट्टी बाल श्रम पूर्ण बंद हो कानूनों का पालन हो सरला मेहता
मार्मिक