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ये कैसा श्रम ? - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

ये कैसा श्रम ?

  • 201
  • 2 Min Read

ये कैसा श्रम ?

कलम वाले नन्हें हाथों में
खड़े पकड़ बुहारी
करने को मज़बूर हो गए
दिन-रात हैं दिहाड़ी
दौड़ दौड़ खिलाते पिलाते
ख़ुद भूखे रह जाते
ठंड,गर्मी,बारिश हो चाहे
पाते नहीं ये छुट्टी

बाल श्रम पूर्ण बंद हो
कानूनों का पालन हो
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

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