कविताअतुकांत कविता
बचपन दो
मीठी मीठी स्वर्णिम यादें
जीवन भर साथ रहती हैं
सहलाती सी संवेदना दो
बचपन तो बच्चों को देदो
गुल्ली डंडे व सितोलिया
खो खो कबड्डी छुपाछाई
नटखट यारों का साथ दो
प्यारे से लम्हों की यादें दो
खेले कूदे खूब दौड़े भागे
संस्कारी सीखें मिल जाए
कलम के बदले लट्टू दो
सुइयाँ घड़ी की ठहरा दो
दादी नानी का साथ मिले
कान्हा की लीलाएँ सीखे
ये ट्विंकल को बुझने दो
नियमों से थोड़ी मुक्ति दो
सहज सी मूल्यों की बातें
खेल खेल में जान जाते
संगीत गीत व चित्रकारी
रुचियों को भी उभरने दो
सरला मेहता