कविताअतुकांत कविता
गहन अंधकार में क्यों,
भटकता रे प्राणी !
मन की आंखें खोल,
अपने अस्तित्व को टटोल।
इस वैभव की ऐशगाह में तू ,
कभी सुकून न पाएगा ।
और जब तू जग में ,
खुशियों का साया ढूंढेगा।
तब दुनिया के मायाजाल के ,
भँवर में फंस जाएगा।
अपने अंतस में कर प्रकाश ,
सत्य ज्ञान से ही सुख पायेगा।
ऋषि ,मुनि, विद्वानों द्वारा,
रचित पुस्तकीय ऋचाओं में।
सब धर्मों का मूल मंत्र ,
पुस्तकों में है पाया जाता।
अथाह ज्ञान भंडार है इनमें,
जग अंधियारा मिट जाता ।
कठिन डगर है ज्ञान की ,
दृढ़ निश्चय से चलना होगा ।
राह की बाधाओं से स्वयं ही,
लड़ना और संभलना होगा ।
कठिनाई को पार कर ,मंजिल को साध कर ।
धर्म ग्रन्थों का ज्ञान, दुनिया में फैला।
जीव ,जगत ,शोहरत ,दौलत ,
मिथ्या हैं जग को बतला ।।