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वो खेत में खड़ी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

वो खेत में खड़ी

  • 225
  • 4 Min Read

वो खेत में खड़ी

हाथ में ले वो हंसिया
दिखाती हुई दन्तपंक्तियाँ
मुस्काती खिलखिलाती
भूलकर ज्यों सारी दुनिया
एक अकेली,वो खेत में खड़ी

लागे है वो बड़ी अलबेली
ना साथ ना कोई हमजोली
लागे है मुझे नई नवेली
श्यामली सी महकती कली
एक अकेली,वो खेत में खड़ी

शब्दावलि से अनजान
ना अर्थ से उसकी पहचान
मीरा राधा सी हो मगन
गा रही है मधुर गान
एक अकेली,वो खेत में खड़ी

गुंजित हैं स्वर लहरियां
गदगद हो रही हैं वादियाँ
ये कैसी है मनमोहनिया ?
याद आ रही पी की सूरतिया
एक अकेली,खेत में खड़ी

दूर देस से आया सन्देसवा?
पुलकित रोम रोम बदनवा
चलूँ तैयार करूँ खेतवा
पी संग फिर बोऊँगी गेहूंवा
एक अकेली,खेत में खड़ी

दिला रही याद मुझे उस
सॉलॉटरी रीपर की,,,,,,,
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

Abasaheb Sarjerao

Abasaheb Sarjerao 3 years ago

bahut sundar

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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