कहानीलघुकथा
"बदला नहीं जा सकता"
" ओहो! आज मेरी मधुरा रुद्रा क्यूँ बनी बैठी है ? "
पति प्रसून की बातें आज उसे सोचने को मज़बूर करती है ," मैं क्यों नहीं मानती प्रसून की राय कि ऑफ़िस में ठंडे दिमाग़ से काम लेना चाहिए।"
वह रुआंसी हो बोली, " आज फ़िर प्रोजेक्ट में मुझसे ग़लती हो गई। गुस्से में बॉस को तुनक कर जवाब दे दिया। अब कल वो क्या कदम उठाएंगे ? "
प्रसून तसल्ली जताते बोलता है, " मधुरा,अब पछताने से क्या फ़ायदा।
तुम्हें तो अपने नाम सा मधुर होना चाहिए। अब जो हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता।लेकिन उसे सुधारा जा सकता है। अब कल ऑफ़िस जाकर सबसे पहला काम क्या करोगी ,,,,? अच्छा आज चाय वाय नहीं पीना क्या ? "
सरला मेहता