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शब्द - राजेश्वरी जोशी (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

शब्द

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# चित्रकविता
शब्द

शब्द नही चाहते सिर्फ,
पुस्तकों में बॅधकर रहना.
चाहते है पंछियों की तरह,
दूर- दूर तक उड़ना.

शब्द बनना चाहते है,
उन लोगों के मधुर गान.
जो तपती धूप में बोते है,
खेतों में धान.

शब्द बनना चाहते है,
उन बच्चों के आशा दीप.
जो बीनते है दिन में कूड़ा,
पढ़ना चाहते हैं किताबों के गीत.

शब्द बनना चाहते है,
उन बच्चों के लोरी के गीत.
जिनका जीवन आसमान तले,
अनाथों की तरह जाता है बीत.

शब्द बनना चाहते है,
उन सैनिकों के मन के मीत,
जो देते है सरहदों पर पहरा,
गाते हुए देशभक्ति के गीत.

शब्द बनना चाहते हैं गीत,
गोरियों के सुरीले कंठों के.
ढोती है जो लकड़ी, गोबर, घास,
सारा दिन अपने सिरों पे.

शब्द बनना चाहते है,
किसी दुखी हृदय की तान,
बंजारे की वंशी पर बजते,
मधुर हृदय के गान.

शब्द छूना चाहते हैं,
हर खेत खलिहान को.
करना चाहते है मन की बात,
हर फूल, पत्ती, कली, उद्यान से.

शब्द सुखद सपने बनकर,
हर आॅखों में रहना चाहते हैं.
ज्ञान की नयी ऊँचाइयों को,
हाथों से छूना चाहते हैं.

शब्द सिर्फ किताबों में बॅधकर,
नही रहना चाहते है.
वह तारों से बनकर मुक्त गगन में,
चमकना चाहते है.

द्वारा
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड







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