कविताअन्य
आवाहन करती है ये वसुंधरा
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आवाहन करती है ये वसुंधरा अभी
उत्तरों में यदि तुम्हारा मौन होगा
अगर ना बचाओगे इस जहां पर वृक्ष
सोच लो इस धरा पर फिर कौन होगा
तिल -तिल में तड़प कर मारे जाओगे
जब इस वसुधा पर समीर ना होगा
वृक्ष बिना वीरान हो जाएगी ये जीवन
तब ना जल , जंगल और कल होगा
आवाहन करती है ये धरा अब अगर
कर्मो में यदि तुम्हारा सही पहल होगा
हरा भरा हो सजीव, वनो से भरेंगी धरा
तेरे कर्मों पर ही हांथो में "कल" होगा
अगर बचाओगे प्रकृतिक उपहारो को
भु पर तब जीवन का सुंदर कल होगा
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@©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
गिरिडीह (झारखण्ड)
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