कवितालयबद्ध कविता
मेरी अभिलाषा
ना चाहती हूँ ,बनना हिंदू ,
ना बनना, मुसलमान.
ना बनना, सिक्ख ही,
ना बनना, क्रिस्तान.
मेरी अभिलाषा है मैं बनूँ,
ऐसा इक इंसान.
दिल में धड़कता हो जिसके,
बस हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान.
दिल में हो मेरे हरदम,
तिरंगे का बस मान.
वन्दे मातरम् होंठों पर,
रहता हो हरदम गान.
आँखों में मेरे अब,
बस यही है अरमान.
जान भी हो मेरी,
देश के लिए कुर्बांन
कफन हो देश की मिट्टी का,
देश का ऊपर हो आसमान.
लिखा हो जिसपर नाम,
सिर्फ हिंदुस्तान, हिंदुस्तान.
ये रचना स्वरचित है।
राजेश्वरी जोशी,
उत्तराखंड