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" चलते चलते " - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

" चलते चलते "

  • 170
  • 3 Min Read

"चलते चलते"

ये लेखनी थम जाती है
यूँ ही बस चलते चलते
लिखूँ अबोध बचपन पे
आज़ाद पंछी गगन के
बेफ़िक्र हैं दोनों कल से
बीते जो और आनेवाले

लिखूँ यौवन दहलीज़ पर
स्वप्निल हसरतों की मुरादें
हैं सँवारती कल के सपनें
हुलसती आशा आकांक्षा
उल्लास से होकर भरपूर
दुनिया जहाँ से हैं बेख़बर

जीवन का आखरी पड़ाव
ऊहापोह भरी कदमताल
अधूरी पूरी इच्छाएँ लिए
बोझिल गठरी सम्भालते
उठाना है हैसियत से परे
बस जाना अनन्त के पार
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

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