कविताअतुकांत कविता
मैंने सबका कहना माना
दादा ने कहा-तुम रुकना नहीं
मैं दौड़ता रहा कभी थमा नहीं
अगल बगल भी झाँका नहीं
और मैं रेस में अव्वल आया
दादी ने कहा-कभी डरना नहीं
परिक्षा के डर से घबराया नहीं
बिना तनाव भय , पढ़ता गया
नतीजा मेरा नम्बर वन आया
पापा ने कहा-तुम,थकना नहीं
पास्ता पिज़्जा छुआ तक नहीं
दाल सब्ज़ी रोटी खाता गया
दूध गटगट पी रोगों को हराया
माँ ने कहा-जलकुक्कड़ नहीं
दोस्ती में मैंने धोखा दिया नहीं
सबकी मदद को हाथ बढ़ाया
ऑलराउंडर का ख़िताब पाया
दीदी ने कहा-ग़लत काम नहीं
तुम लड़की को चिढाना नहीं
मुसीबत में सदा हाथ बढ़ाया
राखी के बंधन को ना भुलाया
भैया ने कहा-घर से दूरी नहीं
हाँ,माँ पापा को सताना नहीं
प्रेम से ही रिश्तों को पनपाया
मैंने भी घर को मंदिर बनाया
मेम ने कहा-जनजीवन नहीं
यदि पर्यावरण सुधारा नहीं
जल पेड़ बचा भू को सँवारा
भारती के प्रति फ़र्ज निभाया
दिल ने कहा-गर सफ़ाई नहीं
तो सेहत, सपने में भी नहीं
जल थल नभ को शुद्ध बनाया
और इंसान बनके ही दिखाया
सरला मेहता