कविताअतुकांत कविता
#चित्र कविता
किताबें
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संकीर्णता की अंध-कंदराओं से
बाहर निकलने की
राह दिखाती हैं किताबें
और किताबों में उगे
शब्द और अक्षर।
मगर, जब शब्द ही
आपस में गड्ड-मड्ड होने लगें
गुत्थम-गुत्था हो जाएँ
और अर्थ खोने लगें
तो समझ लेना
किताबें पढ़ी ही नहीं गयी हैं।
सिर्फ़ पन्ने पलटे गये हैं।
फिर क्या रोशनी ?
क्या रोशनी का चिराग ?
और कौन-सी राह ?
- विजयानंद विजय