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करवाचौथ - Savita Singh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

करवाचौथ

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  • 5 Min Read

करवाचौथ

कितनी अप्रतिम होगी रात
जहां मिलेंगे तीन तीन चांद
एक मेरा चांद मैं उनकी चांद
दूर वह करवा का मुसकाता चांद।

देखूंगी चलनी के पार
मेरे चांद का करूं दीदार।

कितना पावन यह त्यौहार
पहनूंगी बाहों का हार।

करती हूं मैं रोज सिंगार
आज करूं सोलह सिंगार।

देखेंगे जब वो अपना चांद,
आएगी उनके चेहरे पर मुस्कान,
भर लेंगे मुझे वो बाहों में
लिपट जाएगी उनकी जान।

माथे पर शोभे है सिंदूर,
प्रियतम है मेरा गुरूर
कैसे रहुँ मैं उनसे दुर।

करवा कितना प्यारा लागे
मेरा अखंड सुहाग जागे।

दिल से करती हूं उपवास,
मन में रख कर के यह विश्वास
सात जन्मों तक टूटे ना साथ।

सजना है सजना के लिए,
मन में यह धारणा लिए,
करती हूं व्रत मैं तेरे लिए,
करवा का चांद तो आता
है साल में एक रात के लिए,
मेरे चंदा तेरी चांदनी रहे मेरे
घर आंगन जन्मों जन्म के लिए।

करवा पे लेती हूं ये शपथ
रहे जीवन में तू हर वक्त
सारथी मैं रहूं तेरी
चलता रहे यह जीवन रथ।


मौलिक स्वरचित
सविता सिंह मीरा

झारखंड
जमशेदपुर

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

रचना अच्छी है परन्तु मुझे लगता है कि इस रचना पर थोड़ा और समय देने की आवश्यकता है।

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