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एक अनोखा मंदिर - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

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एक अनोखा मंदिर

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एक मंदिर जहां हनुमान को स्त्री रूप में पूजा जाता है।
बाल ब्रह्मचारी पवन पुत्र व राम भक्त हनुमान जिनकी मूर्ति को स्त्रियों को छूने से मना किया जाता है, ऐसे बाल ब्रह्मचारी को पुरुष नहीं बल्कि स्त्री के रूप में छत्तीसगड़ के बिलासपुर जिले से 25 कि. मी. दूर रतनपुर के एक मंदिर में स्त्री के रूप में पूजा जाता है।इस नगरी को महामाया नगरी भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर मां महामाया देवी मंदिर और गिरजाबंध में स्थित हनुमानजी का यह मंदिर है।

कहते हैं, दस हजार वर्ष पहले रतनपुर के राजा पृथ्वी देवजू थे।वे कोढ़ रोग से ग्रसितथे।इस रोग के कारण बेहद निराश और दुःखी रहते थे।एक बार
उन्होंने एक सपना देखा जिसमें उन्हें एक अद्भुत रूप का दर्शन हुआ।उन्होंने संकटमोचन हनुमान को स्त्री रूप में देखा। वे लंगूर की भांति दिख रहे थे लेकिन पूंछ नहीं थी,उनके एक हाथ में लड्डू से भरी थाली थी और दूसरे हाथ में राम मुद्रा। कानों में भव्य कुंडल व माथे पर सुंदर मुकुट माला भी थी।
सपने में हनुमान के स्त्री रूप ने राजा से कहा कि यदि वे एक मंदिर का निर्माण करवाएं, उसमें उन्हें उसी रुप में प्रतिष्ठित करें और उस मंदिर के पीछे एक तालाब खुदवाकर विधिवत पूजा कर स्नान करेंगे तो उनके शरीर का कोढ़ रोग दूर हो जाएगा।
नींद खुलते आते ही राजा ने गिरजाबन्ध में ठीक वैसा ही मंदिर बनवाना शुरु कर दिया जैसा कि हनुमान न सपने में बताया था। लेकिन मंदिर में रखने के लिए मूर्ति कहां से लाई जाए, इसका उपाय भी संकटमोचन हनुमान ने दोबारा राजा के स्वप्न में आकर दिया।

उन्होंने कहा कि मां महामाया के कुण्ड में उनकी मूर्ति रखी हुई है,उसी मूर्ति को मंदिर में स्थापित करवा दें। अगले दिन ही राजा अपने परिजनों और पुरोहितों के साथ देवी महामाया के मंदिर में गए। मूर्ति खोज निकाली गई।उसकी स्थापना मंदिर में करवाई गई। मंदिर के पीछे तालाब भी खुदवाया गया और राजा का रोग दूर हो गया।
इस मूर्ति का मुख दक्षिण की ओर है। मूर्ति में पाताल लोक़ का चित्रण है,इसमें हनुमान को रावण के पुत्र अहिरावण का संहार करते हुए दर्शाया गया है।यहां हनुमान के बाएं पैर के नीचे अहिरावण और दाएं पैर के नीचे कसाई दबा हुआ है. हनुमान के कंधों पर भगवान राम और लक्ष्मण की झलक है।उनके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में लड्डू से भरी थाली है।
कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर रमई पाट में भी एक ऐसी ही मूर्ति स्थापित है।

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