कविताअन्य
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चूल्हे की आँच से तपते चिमटे कि गरमाहट कभी अपने हाँथों से महसूस करना,
कभी चौखट,घर कि दीवारों से की गई बग़ावत के इतिहास को पढ़ना,
और
बिस्तर के सिलवटों से समेट लेना एक स्त्री की आबरू को,
और पढ़ लेना ,
उसके आंसुओं से ज़िस्म को सींचने की गणित को....
उसके मन को टटोलना,
तोड़ देना कुंठित सोच के जेलों को,
और लगा देना समाज को ताला,
बारिश हो जब इश्क़ कि,
आना तुम अपने जज़्बातों की छतरी लिए,अपने साथ,
और शायद तब समझ पाओ एक स्त्री का स्त्री होना...
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✍️ गौरव शुक्ला'अतुल'©