कवितागजल
भर-भर लोटा पिए जा रहे...
भर-भर लोटा पिए जा रहे
बनकर बोझा जिए जा रहे...
कहते थे देंगे सुख लेकिन
पीड़ा सबको दिए जा रहे...
खाया कसम नहीं छूने की
देखो कैसे छुए जा रहे...
हुआ अगर दिन कोई आतर
लगा सभी को मुए जा रहे....
नहीं सुधर सकते यह मानो
गलती जब है किए जा रहे...
इनकी दशा न पूछो घर से
पानी-पानी हुए जा रहे...
कहाँ खबर उनको है राही
बोतल को जो लिए जा रहे...
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
(बस्ती उ. प्र.)