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रिहाई - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

रिहाई

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मद्दी ने, कहा"बस बहुत हुआ हर बरस सूखे और बाढ़ से लड़ना,चल पास ही एक नई कॉलोनी बस रही है ,वहीं कुछ काम ढूंढ़ लेंगे,रूखी- सूखी जो मिलेगी,गुजारा कर लेंगे।"
मीहुली ने अचकचा कर पति की और देखा,दो वर्षों में ही मानो बूढ़ा हो गया है,रोजी- रोटी के चक्कर ने उसे बदल दिया है।
और दूसरे ही दिन गांव छोड़ दोनों शहर में काम तलाशने निकल पड़े।सौभाग्य से एक कोलोनी के पहले ही बंगले में खाना बनाने और बर्तन- झाड़ू वाली उसी दिन छोड़कर गई थी और बीमार साहब की देखरेख के लिए भी किसी मर्द की तलाश चल रही थी,लिहाजा दोनों ही थोड़ी छानबीन के बाद रख लिए गए।
दोनों ने ऊपर वाले का लाख लाख शुक्रिया किया।उस दिन से वे दोनों निष्ठा और लगन से काम करने लगे।मालिक मालकिन भी उन्हें घर के सदस्य की तरह ही मानने लगे।वहीं नौकरों के लिए बनाए कमरे में अपनी छोटी सी गृहस्थी बना कर रहने लगे।
एक दिन मालकिन को किसी का फोन आया।मीहुली यह तो नहीं जान सकी की किसका फोन था और क्या संदेश था,किन्तु उसने देखा कि मालकिन धड़ाम से जो बैठी तो बहुत देर तक गुमसुम वहीं बैठी रहीं,उस दिन उन्होंने खाना भी नहीं खाया।मिहुली के बार - बार आग्रह पर भी भूख नहीं है,ऐसा ही कहा।
दूसरी सुबह कोई मेहमान आया, पता चला उनकी बेटी है,शादी के सात वर्षों बाद अब उम्मीद से है,प्रसव के लिए, प्रसव यहीं होगा।
मीहूली और भी जी- जान से काम करने लगी। फिर एक दिन रानी बिटिया को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें बेटा पैदा हुआ।घर में खुशियों की लहर दोड़ती इससे पहले ही नवजात ने दम तोड दिया।
मानो बिजली गिर पड़ी हो,मालकिन बदहवास हो आंय- बांय बड़बड़ाने लगीं," अब क्या होगा.. क्या करुं...करना होगा..कुछ करना होगा.. वरना..! बेटी का जीवन बर्बाद हो जाएगा!"
मीहुलि मालकिन को संभालने आगे बढ़ी ,उन्होंने उसके दोनों हाथ थाम लिए और गिड़गिड़ाने लगी,"मीहूली,एक बच्चे का इंतेजाम करना होगा वरना बेटी को उसके ससुराल वाले कभी वापिस नहीं ले जाएंगे"!
मीहुलि चौंकी,"कहां से, कैसे,किससे, किसका.. ?"चौंककर एक साथ उसने इतने सवाल पूछ लिए ।
"वह सब मुझे नहीं पता ,तुझे ही सब करना होगा।"
"मैं....! मैं तो यहां किसी को भी नहीं जानती.."!
"यह रख १० लाख रुपए ,कुछ भी कर,बस देर मत कर"।
"मगर ..मालकिन.. अगर में पकड़ी गई तो ?"मीहूलि ने डरते हुए पूछा।
"कुछ नहीं होगा ,किसी सरकारी अस्पताल में कुछ दे दिलाकर काम बन जाता है ,वैसे भी तो न जाने कितने लावारिस  रोज़ाना फेंक दिए जाते हैं,अब जा,देर मत कर"।
मीहूलि ने पति को बताया ,पहले तो वह भी घबरा गया किन्तु १० लाख की रकम ने उसका मुंह बंद करा दिया।
मीहुलि के लिए वह दिन भी शुभ ही निकला ।तुरंत ही दाई ने २ लाख रूपयों के बदले उसकी गोद में एक नवजात डाल दिया।मीहुली उस लिपटे बंडल को लेकर मालकिन के पास पहुंचती इससे पहले पुलिस पहुंच गई। मीहुली अस्पताल के सीसीटीवी कैमरे में  कैद हो चुकी थी।
उसके लाख रोने ,सर पटकने और यह कहना कि वह मालकिन के कहे मुताबिक ही कर रही थी,बेअसर रहा।मालकिन ने भी मुंह मोड़ लिया।
आज से तीन वर्ष पूर्व उसे इस बंदी घर में लाकर कैद कर दिया गया था।
शुरुशुरू मे तो मद्दी,उसका पति मिलने आता रहा,फिर हफ्ते महीनों में बदलने लगे और उसका आना काम होने लगा।
आज उसकी रिहाई थी ,आज का दिन मद्दी कैसे भूल सकता है! वह गेट के बाहर खड़ी होकर उसका इंतज़ार करने लगी,मगर जब दुपहरिया होने को आयी , वह और इंतज़ार न कर सकी।उसने सोचा शायद किसी जरूरी काम में उलझ गया होगा और वह चल पड़ी उस कॉलोनी की ओर। मगर वो साहब ओर मेमसाहब तो कहीं और चले गए थे।
और मद्दी ?जरूर वापस गांव चला गया होगा ।शाम होने आई थी,थके किन्तु आशातीत क़दमों से वह मुड़ी। हां,सामने ही तो मद्दी खड़ा था,और छोटी वह झोंपड़ी ?मीहुली दौड़ कर मद्दी तक पहुंची,मद्दी ने मुंह फेर लिया ,वह घर के अंदर जाने लगी ,वह लपकता हुए आया,"ए कौन है,और कहां घुसती है,चल निकल,चल,चल निकलती है या गरदन पकड़ कर निकालूं ?"
मिहुली अवाक रह गई,उन १० लाख रुपयों ने उससे उसका मद्दी भी छीन लिया था ??
गरदन पकड़ने की नौबत नहीं आई ,वह बाहर निकल अाई।पीछे चूड़ियों की खनक सुनाई दी। बिना मुड़े
वह धीरे -धीरे सड़क पर अा गई ।
वह रिहा हो गई थी।

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दादी की परी
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