कवितालयबद्ध कविता
मन रे क्यों
मन रे क्यों पीड़ा पहुँचाते,मन रे क्यों,
अकेलेपन का अहसास मुझे कराते।
जीवन के अंधेरों से क्यों मुझे डराते,
मन रे क्यों पीड़ा पहुँचाते, मन रे क्यों।
सुख- दुःख तो आना-जाना है,
जीवन कुछ खोना कुछ पाना है।
सुख - दुःख के धागों में उलझाकर,
फिर क्यों मुझे तड़फाते ।
मन रे क्यों-------------------------।
क्या सच है क्या सपना,
क्या रोना है क्या हँसना।
हँसने- रोने के जालों में,
फिर क्यों मुझे फँसाते।
मन रे क्यों---------------------------।
रात के बाद ही दिन की ,अभिलाषा है,
निराशा के बाद ही,जीवन में आशा है।
पराजय का भय दिखलाकर तुम,
क्यों कायर मुझे बनाते।
मन रे क्यों----------------------------।
जन्म लिया है तो मृत्यु, निश्चित है,
बाद मरण के पुन:नया सृजन है।
मृत्यु का भय दिखलाकर फिर,
क्यों मरने से मुझे डराते।
मन रे क्यों-----------------------------।
राजेश्वरी जोशी,
उतराखंड