कवितागजल
झूठ देख इंकार न कर...
झूठ देख इंकार न कर
बेमतलब टकरार न कर...
हो संवेदनशील नहीं
उत्तम वह सरकार न कर...
लूट रहे है जो जन को
उनपे और विचार न कर...
गर ढोंगी खद्दरधारी
उनका कभी प्रचार न कर...
जिनका ऊंचा सिंहासन
घर उनके दरबार न कर...
करता जो विश्वास अटल
कभी पीठ पर वार न कर...
भले बने दुश्मन दुनियां
मित्र कभी मक्कार न कर...
यदि चद्दर छोटा तन का
फिर लम्बा आकार न कर...
दुश्मन होता है दुश्मन
उसको तू प्यार न कर....
डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)