Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
आत्मग्लानि - Anupma Anu (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

आत्मग्लानि

  • 160
  • 9 Min Read

आत्मग्लानि (लघुकथा)

मां………... और काव्या सुबक सुबक कर रोने लगी। रजनी ने बड़े ही विस्मित होकर पूछा 'काव्य क्या हुआ?' मां की ममता भरी आवाज सुन काव्या और जोर जोर से रोने लगी। रजनी ने काव्या की आसुओं को पोछा और गले लगाया।

मां बाप की इकलौती संतान काव्या आज के एकल परिवार में पली बढ़ी। महानगरों की व्यस्त और महंगाई भरी जिंदगी, जहां एक के कमाने से घर खर्च भी ना चले। रजनी और मिहिर इसी महानगर का एक हिस्सा हैं दोनों अपनी इकलौती बेटी काव्या को एक नौकरानी के भरोसे छोड़ कर दिन भर अपने दफ्तर के कामों में व्यस्त रहते। काव्या जब सोयी रहती तो वे चले जाते और जब वो सो जाती तो वे घर लौटते। काव्या दिनभर अकेली ही अपने आप में मस्त रहती दरअसल उसे आदत सी हो गई थी अकेले रहने की। स्कूल में भी काव्या की कोई दोस्ती नहीं थी वह वहां भी चुपचाप बैठी रहती और खुद में ही खोई रहती। पर एक दिन यह अकेली व्यस्तता इसे बड़ी ही महंगी पड़ी। उसके ही साथ बैठी उसकी एक सहपाठी बहुत देर से बेहोश पड़ी थी और उसका ध्यान भी उसकी ओर नहीं गया। जब कक्षा के अन्य सहपाठियों ने उसे देखा तो तुरंत कक्षाध्यपिका को बताया। काव्या को तो उस दिन बहुत डांट पड़ी यहां तक की जब यह बात प्रधानाध्यापिका के पास पहुंचा तो उन्होंने उसे स्कूल से निकालने की बात भी कह डाली।

काव्या ने जब ये बातें मां को बताई तब रजनी को बहुत ग्लानि महसूस हुआ दरअसल गलती काव्या की नहीं उसके माता -पिता की थी जो उन्होंने काव्या को समय नहीं दिया ।उसे अच्छे बुरे का पाठ नहीं पढ़ाया। तब रजनी ने काव्या को बताया' बेटा हमें हमेशा एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और सबसे मिल जुल कर रहना चाहिए', 'पर मां आपने तो कभी ये बताया ही नहीं।' रजनी की आंखें शर्म से नीचे झुक गई। रजनी ने काव्या और उसके प्रधानाध्यापिका से माफी मांगी और काव्या को अश्रुपूरित नेत्रों से गले लगा लिया।
स्वरचित मौलिक रचना
अनुपमा (अनु)

inbound3334972587994596659_1605958880.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG