लेखआलेख
"आज हम जानेंगे कि भारत में रविवार की छुट्टी किसने दिलाई, बच्चो,सोचो अगर रविवार को भी काम पर जाना होता, तो कैसा लगता ?"
"जीवन में काम के साथ -साथ आराम भी आवश्यक है।इसलिए अगर रविवार को भी काम पर जाना होता तो न जाने क्या होता!"जैमिनी ने आश्चर्य से कहा।
"किन महानुभाव ने यह अच्छा विचार किया था,चाचाजी?"कोमल ने कहा।
" जिस व्यक्ति की वजह से हमें ये छुट्टी हासिल हुई है, उन महापुरुष का नाम है “नारायण मेघाजी लोखंडे।”
"कितने दुख कि बात है कि हमें अपने देश के बारे में और अनोखे कार्य करने वाले लोगों की कितनी कम जानकारी है।"कविता ने खिन्न होते हुए कहा।
"सही कहा कविता,नारायण मेघाजी लोखंडे के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ये जोतीराव फुलेजी के सत्यशोधक आन्दोलन के कार्यकर्ता थे।ये कामगार नेता भी थे।"
"इस कार्य को मनवाना बहुत कठिन रहा होगा,चाचू?"इशा ने पूछा।
"आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह छुट्टी उन्होंने समाज सेवा करने के लिए मांगी थी!"
"वह कैसे ,चाचाजी?"वरुण ने पूछा।
" अंग्रेजो के समय में हफ्ते के सातों दिन मजदूरो को काम करना पड़ता था। लेकिन नारायण मेघाजी लोखंडे जी का ये मानना था कि हफ्ते में सात दिन हम अपने परिवार के लिए काम करते हैैं लेकिन जिस समाज की बदौलत हमें नौकरिया मिली हैं, उस समाज की समस्या सुलझाने के लिए हमें एक दिन छुट्टी मिलनी चाहिए।"
"ये किस वर्ष की घटना है,चाचाजी?"यतीन ने पूछा।
" उसके लिए उन्होंने अंग्रेजो के सामने 1881 में प्रस्ताव रखा।अंग्रेज ये प्रस्ताव मानने के लिए तैयार नहीं थे।इसलिए आख़िरकार नारायण मेघाजी लोखंडे जी को इस रविवार की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन करना पड़ा। ये आन्दोलन दिन-ब-दिन बढ़ता गया। लगभग 8 साल ये आन्दोलन चला। आखिरकार 1889 में अंग्रेजो को रविवार की छुट्टी का ऐलान करना पड़ा।"
"वाह,उन्होंने आठ वर्ष तक हिम्मत नहीं हारी!धन्य हैं वे,उन्हें नमन।"विजेता ने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा।
"आपको भी कोटि - कोटि प्रणाम,चाचाजी।"
"आशीर्वाद , बच्चो।"
गीता परिहार
अयोध्या (फैज़ाबाद)