कविताअतुकांत कविता
जिन्दगी
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तुम समझो ना समझो जिन्दगी,
हमने तो बहुत करीब से समझा है,
कभी आती हो खुशियाँ लेकर,
कभी जाती हो रुला कर,
बिन धागे की सूई है जिन्दगी,
सिलती कुछ नहीं बस चुभती जा रही है,
कभी तूने ना मानी कभी हमने ना मानी ,
इसलिये अधूरी सी रही जिन्दगी की कहानी ,
जिन्दगी तू ही बता मैं तुझे कैसे प्यार करूं,
हर रोज कहीं खत्म हो जाता है एक दिन,
तेरा कोई अहसान नहीं मुझ पर,
मैने जीने के लिये हर सांस की कीमत दी है,
फिर भी जिन्दगी बहुत अहसान हैं मुझ पर,
ना कभी हारती है ,ना हारने देती है...
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल