लेखअन्य
समाज : "सुनों !मुझे कैंसर हो गया है !"
लोग : "लेकिन कैसे ? सब तो ठीक है ! "
समाज : " ये पुरुषवादिता और ये स्त्रीवादिता...!!!! ये...मेरे लिए कैंसर ही हैं,जो मुझे अंदर से खोखला कर रहीं है।"
लोग : " लेकिन अगर ऐसा नहीं करेंगे तो समाज क्या कहेगा?"
समाज : "लेकिन मैंने तो कभी आपत्ति नहीं जतायी !किसी के स्त्री,पुरुष या किन्नर होने में ! ये तो आपने मुझे बाँट रखा है अनगिनत हिस्सों में।"
लोग : " लेकिन फिर क्या करें किसकी माने ?"
समाज : "इंसानियत !!! यही मेरे कैंसर की दवा है ! जितना जल्दी समझ जाओगे उतना जल्दी मुझे बचा लोगे,वरना ये कैंसर मुझे बहुत जल्द अंदर से खोखला कर मुझे खत्म कर सकता है।"
#पुरुष_दिवस
✍️ गौरव शुक्ला'अतुल'©