कहानीलघुकथा
पहला प्यार----
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अरे काहे को छेड़ दिया ये मीठा सा तराना । अब क्या करे बहुत पहले छोड़ आये वह यादें जहां हम अपने को किसी हीरोइन से कम नहीं समझते थे । छोटी उमरिया के उगते हुये रंगीले सपने । प्यार की परिभाषा पता नहीं थी । कालिज के सामने उसके पापा का शो रुम l बस वह कभी दिखता तो मन नाच उठता । धीरे धीरे महसूस हुआ कि वह भी जान बूझकर कर उसी समय खड़ा रहता है जब छुट्टी का समय होता है। यह उस समय की बात है मोबाइल तो थे ही नहीं ,टेलीफोन भी कम होते थे ,पर उसकी हिम्मत देखो एक दिन पास आया और बोला की कल तुम्हारा रजिस्टर गेट पर गिर गया था । मेरी सहेलियां साथ थी । मै सकपकाई तो उसने आंखो से मिन्नते की। घर आकर देखा लम्बा चौड़ा प्रेम पत्र रजिस्टर के भीतर रखा हुआ था।
अपनी तो डर के कारण जान ही निकल गयी । जवाब तो नहीं दिया पर रोमान्टिक सपने देखने लगे । हल्कीफुल्की मुलाकात भी हुई पर पता नहीं कैसे घर पर पता लग गयी और जो मां ने सुताई की वह आजतक नहीं भूल पायी । मेरी बेटियाँ शादी शुदा हैं पर जब भी मेरा पहला प्यार याद आता है मै मन ही मन खुश होती हूँ कि चलो कुछ समय के लिये हमने भी प्यार किया था ।
स्व रचित --
डा.मधु आंधीवाल
अलीगढ़