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जागृत - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

जागृत

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जागृत
" इस बढ़ती पाशविकता से समाज सदमे में है, मैं बहुत व्यथित हूं,जो हाहाकार मेरे मन में है, उसे बखान नहीं सकता। ऐसा नीच कृत्य!गिरने की पराकाष्ठा हो गई !  उफ.., लोग इतने कामान्ध क्यूं कर हो गये हैं? हमने इतने कठोर कानून बनाए, इनको कोई डर,भय नहीं है।पुलिस ,प्रशासन किसी का खौफ नहीं ! हे मां काली,तुम्हें ही आना होगा,इस धरा पर जिससे
  ऐसे दरिंदों का अब समूल नाश  हो सके।"दिवाकर जी मंच से दहाड़ रहे थे। मन ही मन कोस रहे  थे,इस बिन बादल बरसात को,जिसकी वजह से मंच ढह गया। दोबारा व्यवस्था करने में इतना समय खराब हुआ।उधर अलग के इंतजाम की भी चिंता लग रही है।

 तभी भीड़ में से किसी ने कहा,"जब सबकुछ मां काली को करना है, तो आप क्या कर रहे हैं, जनता के पैसे की मलाई खा रहे हैं, और घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं?" 
फुसफुसाकर करीब बैठे अपने साथी से बोले," आजकल जनता,खासकर ये नए लौड़े बहुत वाचाल  हो गए हैं,अपने आदमी कहां हैं ?जरालगाओ चारों तरफ, कंट्रोल करो ,भाई।
माइक अब जाकर फिर ठीक हो पाया।फिर शुरू हुए,"मुझे देश की बेटियों की चिंता खाए जाती है।हम इन्हें इन नर भेड़ियों से कैसे बचाएं ? मात्र कुछ ही वर्षों में इतना पतन... हमारे संस्कारों को क्या हो गया? 
क्या होगा हमारे समाज का? 
पाशविक प्रवृतियां थमने का नाम नहीं ले रहीं,किंतु
यह समाज हमारा है,हम से बना है,तो हम ऐसी समस्या को अनदेखा नहीं कर सकते।
किंकर्तव्यविमूढ़, चुपचाप खड़े नहीं रह सकते।
मौन तोड़ना होगा,मुखर होना होगा।जागृत होना होगा।"
तभी दौड़ता हुआ कनुआ नाऊ पीछे पहुंचा और कान में बुदबुदाया ,"सरकार, क्या  करना है, लगता ससुरी सुरमिया जागृत हो रही है, उसको होश आ रहा है।"

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दादी की परी
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