Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
बस नंबर 703 (भाग 1) - Lakshmi Mittal (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँअन्य

बस नंबर 703 (भाग 1)

  • 546
  • 12 Min Read

बस नंबर 703 (भाग 1)

जिंदगी की कच्ची-पक्की सड़कों पर कभी-कभी कई ऐसे अनजाने मिल जाते हैं जिनसे आपको एक अनजाना सा लगाव हो जाता है और वे अनजाने, अनजाने होकर भी, अनजाने नहीं रहते ।
वो भी, उन्हीं में से थी.. ' अनजानी '।
हाँ, 'अनजानी'। यह मेरा ही दिया हुआ नाम है।
रंग गेहूंआ, कमर तक लहराते घने, काले, सीधे मगर आधे रास्ते आते-आते घुंघराले होते बाल,, उम्र? उम्र की क्या बात करूं, बस समझ लीजिए उसने अभी-अभी यौवन का दरवाजा खटखटाया है।

बहरहाल, मैं भी कोई कम नहीं हूँ.. शक्ल-सूरत माशाअल्लाह ठीक-ठाक ही है। शराफत की बात करूँ तो कूट-कूट कर भरी हुई है मुझमें। कोई ऐब नहीं। वरना, मेरे साथ के तो न जाने एक ही दिन में कितने सिगरेट के पैकेट फूंक डालते हैं और लड़कियों को देखते ही, दो उंगलियां, गोलाई लिए होठों में फसा, सीटी बजा-बजाकर, उनका वहाँ से निकलना दूभर कर देते हैं। मगर मैं.. मैं तो निहायती शरीफ रहा, ऐसा मेरी माँ भी कहती है।
खैर, मेरी छोड़िए।
मैं यहाँ 'अनजानी' की बात करने आया हूँ। मैंने उसे, पिछले 6 महीने में, सुभाष बस स्टॉप से बस पकड़ते और हनुमान मंदिर बस स्टॉप पर उतरते और फिर दोपहर बाद, इसी स्टॉप से चढ़, सुभाष बस स्टॉप पर उतरते देखा है।

इन दो स्टॉप के बीच का फासला, मैं और अनजानी मिलकर तय करते। यानी हम एक ही बस में होते। उसके गंतव्य तक जाने वाली और भी कई बसें वहाँ खड़ी होती, मगर वह यही बस पकड़ती 703। बस नंबर 703।

रोज़ की भांति आज भी मैं, बस के अगले द्वार से सटी खिड़की वाली सीट पर बैठा उसी का इंतजार कर रहा हूँ।
इंतजार करना, दुष्कर होता है मगर, उसका इंतजार, मुझे बेहद सुखद अनुभूति देता है।
' क्या आज वह आएगी?' बारिश अपने पूरे शबाब पर है और मस्ती में, सभी को डूबो देना चाहती है। बस में बैठा, तन से तो नहीं मगर मन से मैं अवश्य भीग रहा हूँ।शायद उसकी मोहब्बत में.. इसमें अकेला मेरा दिल नहीं, यह सुहावना मौसम भी गुनेहगार है।

मुझे आज भी अच्छे से स्मरण है, उस दिन भी ऐसी ही एक भीगी सुबह थी जब मैं पहली बार उससे मिला था।
'फ़िल्मों में हीरो-हीरोइनों को बारिश में भीगते व गाना गाते हुए तो आपने अवश्य देखा होगा?' बस ऐसी ही अनुभूति हुई थी उसे देखते ही।
जाने क्या कशिश थी उसमें।
देखना! अभी भी भागते-भागते हनुमान मंदिर बस स्टॉप पहुँचेगी और फिर बस में चढ़ते ही वही सिलसिला शुरू होगा। एक मुस्कान उधर से बिखरेगी और मेरे तन पर लिपटते हुए मेरे दिल तक उतर आएगी और फिर मैं भी एक बड़ी सी मुस्कुराहट उस तक पहुंचाते हुए उसे अपने बगल वाली सीट ऑफर करूँगा। बस खचाखच भरी होगी तो अपनी ही सीट दे दूँगा। बिना ना-नुकुर वह भी सीट पर बैठ, अपने मोबाइल में गुम हो जाएगी। बस फिर पूरे रास्ते हम दोनों के दरमियान एक ही बात होगी कि.. कोई बात नहीं होगी ।
क्रमशः

Screenshot_20200807-182730_1596874863.jpg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG