कविताअतुकांत कविता
दिवाली प्रतिपदा
दीपोत्सव बाद एकम को
सुहाग पड़वा की बारी है
सुहागिनें हमारे भारत की
सूरज के पहले उठती हैं
हर कोना घर का बुहारके
झाड़ू संग सब रखती है
स्नान ध्यान पावनता से
सौलह श्रृंगारों से सजती
फिर झाड़ू संग कचरे को
घर के बाहर जा रखती है
दीप जला पूजा है करती
पटाखे भी फोड़ देती है
देवों पति और बुजुर्गों के
आशीषों से आँचल भरती
अन्नकूट के सारे भोगों से
माहौल पूरा महक जाता
गोरक्षा की शपथ लेकरके
गोवर्धन पूजा है की जाती
गाँवों में सजे पशुधन को
मौज में खेल खिलाते हैं
मित्रों और रिश्तेदारों का
मंगल-मिलन भी होता है
भारत में ही ऐसा होता है
सरला मेहता